यू खफा होकर तेरा फिर मुस्कुराना,
इसी अदा परतों है घायल हम,
ऐसे तो मिलते नहीं हम रोजाना,
पर कभी न मिलकर भी होते है पास हम।
✍️धृति मेहता (असमंजस)

यू खफा होकर तेरा फिर मुस्कुराना,
इसी अदा परतों है घायल हम,
ऐसे तो मिलते नहीं हम रोजाना,
पर कभी न मिलकर भी होते है पास हम।
✍️धृति मेहता (असमंजस)