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Poetry

मुरीद ए जॉन

यू अंजान राहो पर निकलना चाहिए।
खुद से भी कभी रूबरू होना चाहिए।

अय राहे, सीखा है मैने बढ़ने का सलिखा,
हा मगर, कही पे कभी मुड़ना चाहिए।

हो राहे, हो गलियां, या आंखे, या जुल्फे,
है फुरकत के अब भूलना चाहिए।

तुम नही, तो कुछ नींद, कुछ चैन और मै,
है आरज़ू के कुछ मिलना चाहिए।

है सांसो के सफर में अब सुकूँ नही
के ये कारवाँ अब रूकना चाहिए।

है ‘सितम’ तिरा मुरीद ए जॉन,
हर ग़ज़ल में खून थूकना चाहिए।
~मीत नायी

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